कोई बतलाये कैसे कह दूं मेरा देश महान है,
अक्सर फांसी का फंदा पहने मरता यहां किसान है।
तन घायल व्याकुल मन है जीने मरने की बात है,
बिन खाये दिन काट लिया पर अभी गुज़रनी रात है,
उस पर भी ये तेज़ हवाएं घाव कहाँ भरने देती,
मुश्किल से फूस बटोरे थे सर पे छत तो रहने देती,
छप्पर टूटा टूटी देहरी किस्मत में कहां मकान है,
अक्सर फांसी का फंदा पहने…………………।
सरकारी फरमानों की कुछ खबर न अबतक आई है,
चटकी तपती सूखी धरती बस नमीं आंख में छाई है,
टकटकी लगाए बैठा था इसबार वही फिर बात हुई,
अम्बर में बादल न छाए आंखों से फिर बरसात हुई,
बारिश में आंखें सूख गईं कहने को इनमे जान है,
अक्सर फांसी का फंदा पहने…………………..।
कुछ कर्ज़ की गिरती बूंदों से सूखे मन को आराम मिला,
फसल बेंच तो दी लेकिन न लागत का ही दाम मिला,
जख्मों पर लोन* लगा है अब कैसे भी इसे चुकाना है,
बच्चों को कैसे पढ़ा सके बिटिया का ब्याह कराना है,
फिर चिंता में इक चिता जली इक सूनी हुई मचान है,
अक्सर फांसी का फंदा पहने………………………।
© मोहित ‘विशेष’
( लोन – अवधी में नमक)